Wednesday, June 7, 2017

Saurabh ki kalam se...

मैं सुनता हूँ और भूल जाता हूँ , मैं देखता हूँ और याद रखता हूँ, मैं करता हूँ और समझ जाता हूँ.
इसी तरह मैं सीखता हूँ औऱ यही हुनर मुझे आता है।
कभी मैं पागल हुआ जाता हूं काम के लिए, कभी काम मुझे पाग़ल कर देता है।

में चाहता हूँ मैं सुनू, और मैं सुनता भी हूँ।
मैं कहता हूँ कि मैं देखूं, और में देखता भी हूँ।
मैं कहता हूं कि मैं याद राखूं, और में याद रखता भी हूँ, उसे अमल में लाता हूँ मेरा काम ही अमल करना और उसे अमल में लाना है।
मैं समझता हूँ, करता हूँ और फिर समझ के फिर करता हूँ।
और यही हुनर मुझे आता है ।

सौरभ की कलम से...

No comments:

Post a Comment