|| ये खामोश दीवारें ||
|| ये खामोश दीवारें ||
|| ये खामोश दीवारें ||
|| चुप खामोश दीवारें, कह रहीं न जाने कुछ...
अपने में समाहित, कई खामोश कहानियां ||
चुप सी रहती, सहती, न कहती कुछ...||
|| सोचा चलो यूँ ही दीवारों से दोस्ती की जाये।
कुछ अपनी तो कुछ पराई यादें ही ताज़ा की जाये ||
आखिर ये भी तो चाहती कुछ कहना, सुनना किसी से...
तो यूँ ही बैठ गया और लगा गुफ्तगू करने...
यक़ीन मानें जो परत-दर-परत खुलती गयी दीवारें...
अपनों का अपनों से संवाद जो परवान पर था
दू_________री अब नज़दीकियों में तब्दील हुई प्रतीत होती ...
ऐसा मिलान संयोगवश बरसों बाद हुआ |
मानों सपरिवार मिलान समारोह का आयोजन हुआ ||
था सबकुछ काल्पनिक |
परन्तु कल्पना से परे ||
अपनों का अपनों से मिलान ...
एक अलग ही रसानुभूति करा गया ||
|| ये खामोश दीवारें ||
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