।।कलाकार की कलाकृति का असली हकदार।।
एक कलाकार की उत्पत्ति उसी प्रकार होती है जीस प्रकार श्रष्टि की।
श्रष्टि अपने मे समाहित उन तमाम विषय वस्तुओं को अपने सौंदर्य का हिस्सा बनाती जो इससे संबंध रखते हैं।
ठीक उसी प्रकार कलाकार की कृति उसकी एकाकी सोच का प्रमाण है, परंतु प्रकृति में समाहित प्रत्येक वस्तु के समान कलाकार की तमाम प्रयोग आने वाली विषय वस्तु भी उसका हिस्सा है, उस कलाकृति का अंश है, जिसे प्रथक करना दूध से पानी निकालने जैसा है।
एक विशाल श्रुष्टि की रचना के पीछे कई वर्षों का समय लगा परंतु श्रष्टि की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति मानवाकृति है। इस कृति ने अपनी सूझ-बूझ से एक ओर कल्पना से परे कलाकृतियों का निर्माण प्रारम्भ किया।ईश्वर के आग्रहनुसार हुम इस कार्य को श्रष्टि के निर्माण की ही तरह अपने अन्तर्मन की गहराईयों तले मोती खोज लाते है।
जब एक-एक मोती को पिरोया जाता है तब वह एक लेस मात्र हार नहीं अपितु उस मेहनतकश कलाकार की आत्मानुभूति से सौन्दर्यानुभूति का प्रमाण प्राप्त होता है।
एक कलाकार की करती का मूल्य कोई व्यापार का ठेकेदार तो दे देगा परंतु जगजाहिर है कि कलाकार की कृति का असल व वास्तविक मूल्य वह ठेकेदार तो क्या स्वयं ईश्वर के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है।
इसके लिए तो अन्तर्मन के चक्षुओं को घोर तपस्या से जाग्रत करना होगा।
और जो यह कार्य मे निपुण है वह उस कलाकृति का असल हकदार होगा।
एक कलाकार के मन के उद्भभावों से...
सौरभ भट्ट
भारतीय कलाकार
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